भारत और अफगानिस्तान अपने रिश्तों को एक नया आयाम दे रहे हैं। शहतूत डैम दोनों देशों के बीच रिश्तों को एक नया आयाम देने का जरिया बनने वाला है। इस अहम प्रोजेक्ट के समझौते के बाबत दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारत-अफगानिस्तान सम्मेलन में बातचीत की है। आपको बता दें कि भारत ने अफगानिस्तान में इस प्रोजेक्ट के अलावा 80 लाख डॉलर की लागत के प्रोजेक्ट भी तैयार करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। आतंकवाद से जूझ रहे अफगानिस्तान के लिए भारत करीब 150 प्रोजेक्ट की घोषणा कर चुका है।
काबुल रीवर बेसिन पर शहतूत डैम
नवंबर 2020 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जिनेवा डोनर्स कांफ्रेंस में काबुल नदी पर शहतूत डैम बनाने की घोषणा की थी। ये शहतूत डैम भारत की मदद से काबुल नदी के बेसिन में बनाया जाएगा। ये बेसिन अफगानिस्तान के पांच में से एक है। अफगानिस्तान में बनने वाले इस डैम से काबुल के लोगों को पीने और सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा। इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 300 मिलियन डॉलर से अधिक है। वर्ष 2012 में इस प्रोजेक्ट से पहले हुई स्टडी पर करीब 11 लाख डॉलर का खर्च आया था। इससे आने वाला रिटर्न करीब 20 लाख डॉलर होगा।
डैम के बनने से होगा लोगों का फायदा
इस डैम का डिजाइन ईरान की एक कंपनी पोयाब ने तैयार किया है। अफगानिस्तान के जल और बिजली मंत्री का कहना है कि इस बांध के बन जाने से काबुल के 20 लाख लोगों को पीने का पानी मिल सकेगा। इसके अलावा चारासायब और खैराबाद की करीब 4000 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इसकी बदौलत डेसब्ज के लोगों को भी पानी मिल सकेगा। इस डैम की एक बड़ी खासियत ये भी है कि इसकी वजह से न तो पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचेगा और न ही नदी के प्रवाह में कोई बदलाव आएगा। इस डैम से ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने में भी मदद मिल सकेगी। अफगानिस्तान सरकार के मुताबिक ये प्रोजेक्ट देश में पर्यटन को भी बढ़ावा देने में सहायक साबित होगा। साथ ही इससे लोगों का जीवन भी सुधरेगा और उनके लिए नौकरियों का सृजन होगा। इसके अलावा ये यहां पर आने वाली बाढ़ को रोकने में भी सहायक साबित होगा।
अफगानिस्तान के जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी अधिक
अफगानिस्तान के जीडीपी में करीब 20-40 फीसद तक की हिस्सेदारी कृषि क्षेत्र की होती है। इस देश की करीब 60 फीसद आबादी कृषि पर निर्भर करती है। देश के करीब 20 प्रांत ऐसे हैं जहां बर्फबारी में 2017 के बाद से करीब 60 फीसद तक की कमी आ चुकी है। बीते कुछ वर्षों में सिंचाई की सहूलियत न होने की वजह से कई जगहों पर सूखा भी पड़ा है। इसकी वजह से हालात और अधिक खराब हुए हैं। जिस नदी पर शहतूत डैम बनना है वहां पर पिछले साल आए सूखे की वजह से लोगों को बुरे दौर से गुजरना पड़ा था। इसकी वजह से काबुल नदी का जलस्तर करीब 10 मीटर तक नीचे चला गया। बीते दस वर्षों में काबुल की जनसंख्या करीब दोगुनी हो चुकी है। इसकी वजह से देश की राजधानी पर बोझ बढ़ा है। सरकार के लिए देश के अधिकतर लोगों तक आज भी पीने का साफ पानी पहुंचाना बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में काबुल नदी पर बनने वाला शहतूत डैम अफगानिस्तान के लिए उसकी तकदीर और तस्वीर बदलने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
पाकिस्तान शहतूत डैम के खिलाफ
पानी को लेकर 1973 में अफगानिस्तान ने ईरान के साथ समझौता किया था। लेकिन समय के साथ इसको पीछे छोड़ दिया गया। इसकी वजह यहां पर तालिबान के बढ़ते कदम बने। दरअसल, अफगानिस्तान ईरान पर लगातार तालिबान को बढ़ावा देने और हेलमंड नदी पर बनने वाले बांध के निर्माण में बाधा पहुंचाने का आरेाप लगाता रहा है। वहीं पाकिस्तान भी भारत के सहयोग से बनने वाले शहतूत डैम के खिलाफ है। पाकिस्तान का कहना है कि इस बांध के बन जाने से पाकिस्तान में पानी की कमी हो जाएगी।गौरतलब है कि काबुल नदी हिंदूकुश पर्वत के संगलाख क्षेत्र से निकलती है और काबुल, सुरबी और जलालाबाद होते हुए खैबर पख्तूनख्वा से पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
कभी नहीं होती थी पानी की किल्लत
कुछ दशक पहले तक अफगानिस्तान में पानी की किल्लत नहीं हुआ करती थी। यहां पर 80 फीसद तक संसाधन की आपूर्ति का सबसे बड़ा जरिया पानी ही रहा है। सर्दियों में यहां के हिंदुकुश और हिमलाय के क्षेत्र में होने वाली बर्फबारी की वजह से गर्मियों में पानी की आपूर्ति पूरे वर्ष बनी रहती थी। देश के सभी पांच नदियों के बेसिन पानी से लबालब रहते थे। लेकिन बाद में यहां पर रूस और फिर अमेरिका द्वारा हुई बमबारी की वजह से यहां पर आए बदलाव ने स्थिति को काफी बदल कर रख दिया।