पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट (Pakistan’s Supreme Court) ने बुधवार को दो मानसिक तौर पर बीमार लोगों को दिए गए मृत्यु दंड की सजा को रोक इलाज के लिए भेज दिया। साथ ही सरकार को निर्देश दिया क तीसरे मानसिक रोगी की भी मृत्युदंड की सजा को बदल दिया जाए। 2016 में कोर्ट ने शिजोफ्रेनिया ग्रस्त इमदाद अली को मृत्युदंड दिया था। मानवाधिकार समूहों (Human rights groups) ने फैसले का स्वागत किया।
जस्टिस प्रोजेक्ट पाकिस्तान के कार्यकारी निदेशक सारा बेलाल (Sarah Belal) ने बताया, ‘यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें मानसिक बीमार होने पर सजा में राहत देने देने के हमारे दशक भर के संघर्ष को वैध करार दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की लाहौर रजिस्ट्री में न्यायमूर्ति मंजूर अहमद मलिक की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की लाहौर रजिस्ट्री में न्यायमूर्ति मंजूर अहमद मलिक की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया। 7 जनवरी को इसी बेंच ने सुनवाई के दौरान अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
2014 से अब तक कुछ 518 लोगों को फांसी की सजा दी गई और 4 हजार से अधिक कैदी ऐसे हैं जिन्हें यह सजा दी जानी है। इमदाद अली को 2001 में एक हत्या के जुर्म में फांसी की सजा दी गई। इसके बाद सरकारी डॉक्टरों ने जांच में पाया कि उन्हें शिजोफ्रेनिया है। 2016 में कोर्ट ने कहा था कि यह स्थायी मानसिक बीमारी नहीं है और मानवाधिकार समूहों की ओर से किए जा रहे विरोधों के बावजूद फांसी की सजा दी जाएगी। ऐसी ही सजा भुगत रही कनिजान बीबी है जिसने 30 साल जेल में बिता दिए। इसने किशोर अवस्था में 6 लोगों की जान ले ली थी। बीबी के 28 वर्षीय कजिन मुनव्वर हुसैन ने फैसले का स्वागत किया और बताया कि वो मात्र 15-16 साल की थीं जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था। जजों का कहना है कि सरकार को तीसरे शख्स गुलाम अब्बास को माफी दे देनी चाहिए जो 2006 में एक मर्डर का दोषी है।