16वीं सदी के गुरुद्वारे पंजा साहिब और अन्य अहम ऐतिहासिक स्थलों पर 10 दिवसीय बैसाखी उत्सव मनाने के लिए 815 भारतीय सिख सोमवार को लाहौर पहुंचे। बैसाखी के दिन ही 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों का नया साल भी होता है।
यात्रियों’ को वाघा सीमा पर सिख परंपरा के मुताबिक लंगर परोसा गया
सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और इवैक्यूई ट्रस्ट प्रापर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) के अधिकारियों ने वाघा सीमा पर भारतीय सिख श्रद्धालुओं का स्वागत किया। ईटीपीबी एक वैधानिक बोर्ड है जो विभाजन के बाद भारत चले गए हिंदुओं और सिखों की संपत्तियों व धर्मस्थलों का प्रबंधन करता है। ईटीपीबी के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने बताया कि यात्रियों’ को वाघा सीमा पर सिख परंपरा के मुताबिक लंगर परोसा गया।
गुरुद्वारा पंजा साहिब पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर से करीब 350 किमी दूर हसन अब्दल में स्थित है। माना जाता है कि यहां सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक के हाथों की छाप है। हाशमी ने बताया, ‘आवश्यक आव्रजन मंजूरियों के बाद श्रद्धालुओं को बस से गुरुद्वारा पंजा साहिब ले जाया गया। मुख्य कार्यक्रम 14 अप्रैल को पंजा साहिब में ही आयोजित किया जाएगा।
श्रद्धालुओं को 10 दिवसीय यात्रा के दौरान पाकिस्तान के सभी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक गुरुद्वारों में लेकर जाया जाएगा और वे 22 अप्रैल को लौटेंगे।’ बता दें कि नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग ने बैसाखी उत्सव के सिलसिले में 1,100 से ज्यादा सिख श्रद्धालुओं को वीजा जारी किए थे।