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40 से अधिक देशों ने चरणबद्ध तरीके से कोयले का इस्तेमाल खत्म करने का संकल्प लिया है। जीवाश्म ईधनों में कोयला सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्पन्न करता है। ग्लासगो में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान इसको लेकर समझौते की घोषणा की गई। इससे उत्साहित सम्मेलन के प्रमुख आलोक शर्मा ने कहा कि कोयले का अंत अब निकट दिखाई दे रहा है।
कोयला के सबसे बड़े उपभोक्ता भारत-चीन समझौते से बाहर
हालांकि, चीन और भारत समेत कोयले के सबसे बड़े उपभोक्ता कई देश इस समझौते से बाहर रहे। मोटे तौर पर चीन और भारत मिलकर दुनिया के दो तिहाई कोयले का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा आस्ट्रेलिया भी समझौते से बाहर रहा, जो दुनिया का 11 नंबर का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता और बड़ा निर्यातक है। अपनी बिजली के लगभग पांचवें हिस्से का उत्पादन कोयले से करने वाले अमेरिका ने भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
नए समझौते में शामिल 23 देशों ने पहली बार किया ये वादा-
नए समझौते में शामिल 23 देश ऐसे हैं, जिन्होंने पहली बार वादा किया है कि वे अपने यहां नए कोयला संयंत्र की अनुमति नहीं देंगे और चरणबद्ध तरीके से कोयले का प्रयोग बंद कर देंगे। इनमें पांच देश-पोलैंड, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और यूक्रेन दुनिया के 20 सबसे ज्यादा ऊर्जा उत्पादन करने वाले देशों में शुमार हैं। माना जाता है कि घरेलू राजनीति के चलते अमेरिका ने इस समझौते से अलग रहने का फैसला किया है।
कार्बन उत्सर्जन की निगरानी में मदद कर सकते हैं उपग्रह
ग्लोबल वार्मिग को नियंत्रित करने के लिए 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत विभिन्न देशों को उत्सर्जन में कटौती के उपायों और इसकी प्रगति रिपोर्ट देने का प्रविधान किया गया था। इसके तहत देशों की ओर से अपनी सीमा के अंदर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन, इसके स्रोतों का विवरण और इसे कम करने को लेकर जानकारी नियमित रूप से दी जाती है। इसके बाद तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा इसकी समीक्षा की जाती है। आकलन की इस प्रक्रिया का मकसद पारदर्शिता सुनिश्चित करना और देशों में आपसी विश्वास बढ़ाना है। हालांकि, इसमें बहुत ज्यादा समय लगता है और सटीक आकलन से यह कोसों दूर रह सकता है। लेकिन क्या हो, अगर तापमान में बदलाव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार गैस कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन में बदलाव की ज्यादा सटीक और तेजी के साथ रिपोर्ट करना संभव हो जाए? यह प्रक्रिया अत्यंत उपयोगी हो सकती है, क्योंकि दुनिया का लक्ष्य तापमान को नियंत्रित करना ही है।
नासा के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि उपग्रह के जरिये कार्बन डाईआक्साइड को माप कर वे अमेरिका और अन्य इलाकों के वायुमंडल में इसके उत्सर्जन में मामूली कमी का पता लगाने में कामयाब रहे हैं। 2020 के शुरुआती दिनों में कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लाकडाउन के चलते उत्सर्जन में यह कमी दर्ज की गई थी।