China moon mission: चीन के वैज्ञानिकों ने पिछले 30 वर्षों में ऐसे-ऐसे करिश्मे किए हैं, कि अमेरिका समेत यूरोपियन यूनियन के दिगग्ज फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन सब दंग हैं। नकली सूरज (Artificial Sun China) का निर्माण हो या स्पेस स्टेशन (Chinese Space Station), उसके प्रोजेक्ट्स डेडलाइन से काफी आगे चल रहे हैं। अप-नेक्स्ट परियोजनाओं की बात करें तो बीजिंग के रिसर्चर्स का फोकस चांद (Moon) पर लगातार बना हुआ है। अब चंद्रमा के सुदूर हिस्से में जमे पानी की खोज के लिए चीन, उड़ने वाला रोबोट भेजने जा रहा है। उसका ये फ्लाइंग रोबो, भविष्य में चंद्रमा से जुड़े अनसुलझे रहस्यों की खोज में सबसे बड़ा और सफल कदम हो सकता है।
क्या करने जा रहा चीन?
China, अपने महत्वाकांक्षी स्पेस प्रोग्राम को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। अब अगले वर्ष उसका रोबोटिक ‘फ्लाइंग डिटेक्टर’ चीन के चांग-7 मिशन के अनुसार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर तैनात किया जाएगा, जिसका उद्देश्य पांच वर्ष के भीतर चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने के सुरक्षित माहौल बनाना है।
चीन ने स्वयं को अंतरिक्ष में एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करने के लिए ये अहम आरंभ की है। अब वो ऐसे डोमेन पर काम कर रहा है, जिसमें अमेरिका समेत कई राष्ट्र न केवल वैज्ञानिक लाभ, बल्कि प्राकतिक संसाधनों और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तेजी से चांद के हर राज को सुलझाकर उस पर जीत हासिल करके, हर मुद्दे में नंबर वन होना चाहते हैं।
हालांकि इस अभियान में चांद पर पानी मिलना कोई नयी बात नहीं होगी। पिछले साल, चीनी वैज्ञानिकों ने चांग-5 चंद्र जांच से मिट्टी के नमूनों में पानी पाया था, जबकि नासा और भारतीय अंतरिक्ष स्पेस एजेंसी इसरो के यान से हुए रिसर्च में माना जाता था कि चंद्रमा की सतह पर पानी होगा। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि वो पानी नहीं सिर्फ़ बर्फ है, जो चंद्रमा के दूर के गड्ढों में गहराई तक संरक्षित है। जाहिर है चांद के उस पार की गतिविधियों का पता लगाने के बाद ही जब वहां पानी के सोर्स के बारे में सबकुछ पता चल जाए तब भविष्य के मून मिशन को मानवों के लिए सुरक्षित बनाया जा सकेगा, अन्यथा अभी तक तो चांद में पानी और बर्फ को लेकर अंधेरे में तीर चलाए जाते थे। चीनी अंतरिक्ष जानकारों ने हाल ही में स्टेट मीडिया ब्रॉडकास्टर सीसीटीवी को कहा कि चांद में बर्फ की खोज, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक रिसर्च बेस बनाने की चीन की तैयारी का हिस्सा है।
चीन के मून रिसर्च विंग प्रोजेक्ट के हेड डिजाइनर वू वीरेन के मुताबिक, ‘चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कुछ बहुत गहरी गुफाएं हैं और हमें लगता है कि वहां पानी हो सकता है। हमें आशा है कि हमारा फ्लाइंग डिटेक्टर लैंडिंग के बाद एक या दो गुफाओं में ऑन-साइट निरीक्षण करके एक्यूरेट परिणाम यानी रिपोर्ट दे सकता है।‘
चीनी जानकारों ने बोला कि बर्फ के भंडार की खोज से एक दिन चंद्रमा पर मानव जीवन को बनाए रखने में सहायता मिल सकती है। इस प्रोजेक्ट की सफलता से अगले स्पेस मिशन के प्रोजेक्ट्स की लागत में काफी कमी आएगी। इसके साथ ही चांद में अलौकिक जीवन की आसार का पता चल जाएगा। अन् एक्सपर्ट्स का भी यही मानना है कि चांद में पानी की खोज भविष्य की तमाम संभावनाओं की खोज के दरवाजे खोलेगी। अभी तक साइंटिस्ट ये न पता लगा पाए हैं कि क्या चंद्रमा पर फसल उगाई जा सकेगी या वहां पीने योग्य पानी का व्यवस्था हो जाएगा। अगले रिसर्च में हम ये जानने की प्रयास करेंगे कि वहां कितना पानी है, और वो किस चीज में मिलकर कैसा रासायनिक रूप लेगा।
चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन ने हाल के सालों में तेजी से जटिल रोबोटिक चंद्र मिशनों की एक श्रृंखला को अंजाम दिया है, जिसमें पिछले वर्ष चंद्रमा के सुदूर हिस्से से पहली बार चंद्र नमूनों की वापसी भी शामिल है। इस तरह चीन, चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने वाला दूसरा राष्ट्र बनने की प्रयास कर रहा है। उसका बोलना है कि उसका पहला मानवयुक्त मिशन ‘2030 तक’ होगा।
इस योजना के तहत, 2026 के लिए निर्धारित चांग’ई-7 मिशन का लक्ष्य एक ऑर्बिटर, एक लैंडर, एक रोवर – और फ्लाइंग डिटेक्टर का इस्तेमाल करके चंद्र दक्षिणी ध्रुव का सबसे विस्तृत सर्वेक्षण करना है। चीन के साइंटिस्ट ने कहा कि उसका फ्लाइंग रोबोट अपने पैरों को मोड़ सकेगा और ऊंचाई से कूदने वाले इंसानों की तरह ही जमीन पर उतर सकता है। हालांकि रिपोर्ट में यह खुलासा नहीं किया गया है कि उसके कितने पैर हैं।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि उसका फ्लाइंग रोबो, सूरज की रोशनी वाले क्षेत्रों से छाया वाले गड्ढों तक कम से कम तीन छलांग लगा सकता है। इतने में उसकी सेफ लैंडिंग हो जाएगी। स्टडी से पता चला है कि चांद पर बर्फ उसके ध्रुवों पर सबसे अंधेरे और सबसे ठंडे क्षेत्रों में है। उन गड्ढों की छाया में बर्फ है, जहां चंद्रमा की धुरी के झुकाव के कारण सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती है। वहीं चांग’ई -7 मिशन के उप मुख्य डिजाइनर, तांग युहुआ ने बोला कि चांद का कठिन वातावरण और सख्त परिस्थितियां ही उसके रोबोट की ताकत की असल परीक्षा होंगी, क्योंकि उन उल्टा परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करना मानवों के लिए भी एक बड़ी चुनौती होगा।‘
चांद का चैंपियन चीन?
बीते 30 वर्षों में चीन के रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेक्टर में पड़ोसी चीन ने अपना निवेश बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ाया है। R&D में चीन दुनिया में दूसरे पायदान पर है, जिसने स्पेस रिसर्च में सबसे अधिक खर्च किया है जिसमें गौरतलब बढ़ोतरी हो रही है। चीन ने पिछले वर्ष चांग ई-6 मून मिशन (Chang E 6 moon mission) लॉन्च किया था। जो चंद्रमा के सुदूर हिस्से से 2 किलोग्राम चट्टान का सैंपल लेकर धरती पर लौटा था। 2024 में उसकी स्टडी में वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के एक रहस्य का पता लगाया। इस तरह चीन के वैज्ञानिक पहली बार चंद्रमा के दूर वाले हिस्से पर ज्वालामुखी विस्फोटों की परफेक्ट उम्र मापने में सक्षम हुए थे।
वैज्ञानिकों ने उस समय रिसर्च के लिए रेडियोमेट्रिक डेटिंग टेकनीक का इस्तेमाल किया था, उस रिसर्च के नतीजे नेचर एंड साइंस जर्नल में छपे थे। स्टडी में पाया गया कि चंद्रमा के दूर हिस्से पर उपस्थित सबसे पुराना और सबसे गहरा गड्ढा 2.8 अरब वर्ष पहले एक एक्टिव ज्वालामुखी था। इसके पहले अपोलो, लूना और चांग’ई-5 मिशनों के सैंपल के रिसर्च में ये सामने आया था कि चंद्र ज्वालामुखी 4 अरब से 2 अरब साल पहले हुआ था। हालांकि वो सभी सैंपल चंद्रमा के पास वाले हिस्से से जुटाए गए थे।
अमेरिकी दशकों पहले चीन पर अपने यात्री उतार चुका था, लेकिन तब से अबतक उसने कोई और ठोस तरक्की नहीं की है, ऐसे में चीन यदि इसी तरह से खटाखट चांद के राज जानकर वहां पर अपना दबदबा बना लेता है, तो वह वाकई चांद का चैंपियन कहलाएगा।