कोलकाता डॉक्टर डेथ मुकदमा पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही थी। पश्चिम बंगाल सरकार, CBI की ओर से दलीलें पेश की जा रही थीं। लेडी डॉक्टर की ओर से पेश वकील अपनी बात रख रही थीं, इसी बीच सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को एक बात खटक गई। सुनवाई के बीच उन्होंने भरी न्यायालय से माफी मांगी और कहा, मैं बार-बार एक शब्द का गलत उच्चारण कर रहा था।
हुआ कुछ यूं कि सुनवाई के दौरान आरजी कर अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों की ओर से पेश वकील ने कहा, मैं उनकी बात रखने के लिए यहां उपस्थित हूं। जैसे ही सीजेआई ने ‘आरजी कर’ सुना, उन्हें कुछ याद आ गया। वकील को बीच में ही टोकते हुए सीजेआई ने कहा, ‘मैं एक चीज के लिए माफी मांगता हूं, मैं बार-बार ‘आरजी कर’ को ‘आरजी कार’ संबोधित कर रहा था। जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने मुझे इस बारे में कहा है। मैं गलत प्राउंसिएशन के लिए माफी चाहता हूं…’आरजी कर अस्पताल के बारे में जानिए
कोलकाता के जिस आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर का कत्ल हुआ, उसकी स्थापना 1886 में एक डॉक्टर राधा गोविंद कर ने की थी। तब इसका नाम उन्होंने कलकत्ता स्कूल ऑफ मेडिसिन नाम रखा था। उस वक्त इससे जुड़ा कोई अस्पताल या अपना कैंपस नहीं था। बाद में 1902 में कॉलेज को एक कैंपस मिला और इसका नाम बदलकर बेलगाछिया मेडिकल कॉलेज कर दिया गया। मगर 2 वर्ष बाद ही बंगाल के गर्वनर थॉमस गिब्सन कारमाइकल के सम्मान में इसका नाम बदलकर कारमाइकल मेडिकल कॉलेज कर दिया गया। लेकिन जैसे ही राष्ट्र को आजादी मिली, इसका नाम फिर बदला गया और संस्थापक डॉ राधा गोविंद कर के नाम पर कर दिया गया। तब से इसे आरजी कर मेडिकल कॉलेज के नाम से ही जाना जाता है। पश्चिम बंगाल गवर्नमेंट इसका संचालन करती है।
सुप्रीम न्यायालय ने पूछे गंभीर सवाल
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने आरजी कर कॉलेज प्रशासन पर भी गंभीर प्रश्न उठाए। पूछा-आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य के संपर्क में कौन था? उन्होंने प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी क्यों की? इसका उद्देश्य क्या था?’ पुलिस पर प्रश्न उठाते हुए सीजेआई की पीठ ने कहा, ऐसा कैसे हुआ कि पोस्टमार्टम 9 अगस्त को शाम छह बजकर 10 मिनट पर किया गया, लेकिन अप्राकृतिक मृत्यु की सूचना ताला पुलिस पुलिस स्टेशन को 9 अगस्त को रात साढ़े 11 बजे भेजी गई। यह बहुत परेशान करने वाली बात है।