नई दिल्ली: सर्वोच्च कोर्ट ने आज गुरुवार (12 सितंबर) को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पुणे में भगवान गणेश की मूर्ति विसर्जन अनुष्ठान के दौरान प्रत्येक ढोल-ताशा-जंज मंडली के सदस्यों की संख्या 30 व्यक्तियों तक सीमित कर दी गई थी. हिंदुस्तान के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार, पुणे के अधिकारियों, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) और अन्य को नोटिस जारी किए.
सुप्रीम न्यायालय ने कहा, “उन्हें ढोल-ताशा बजाने दीजिए, यह पुणे की जान है.” दरअसल, NGT ने प्रत्येक समूह में ढोल-ताशा-जंज टोलियों की कुल संख्या को सिर्फ़ 30 तक सीमित करने के निर्देश दिए थे, साथ ही प्रत्येक गणेश पंडाल के आसपास ध्वनि प्रदूषण की असली समय पर नज़र करने और उल्लंघनकर्ताओं के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही प्रारम्भ करने का निर्देश दिया था. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने बोला कि पुणे के गणेश उत्सव में ‘ढोल-ताशा’ का बहुत गहरा सांस्कृतिक महत्व है. पीठ ने कहा, “नोटिस जारी करें… अमित पई ने प्रस्तुत किया कि निर्देश (संख्या 4) ढोल-ताशा समूहों को प्रभावित करेगा, सूचीबद्ध होने के अगले दिन तक निर्देश संख्या 4 के संचालन पर रोक रहेगी. उन्हें अपना ढोल-ताशा करने दें, यह पुणे की जान है.” 30 अगस्त को NGT पश्चिमी घाट ने 7 सितंबर से प्रारम्भ हुए 10 दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने के उद्देश्य से विभिन्न निर्देशों के अनुसार गणेश पंडालों के आसपास और विसर्जन जुलूस के दौरान शोर की असली समय नज़र का आदेश दिया था.