क़रीब 9 साल पहले करण जौहर की फ़िल्म पाठशाला से निकले स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर सिद्धार्थ मल्होत्रा ने आख़िरकार शेरशाह से हर इम्तेहान पास कर लिया। फ़िल्म को ज़्यादातर समीक्षकों और दर्शकों ने अच्छे रिव्यूज़ दिये हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सिद्धार्थ का टाइम अब आ गया है।
शेरशाह ने उनके करियर के लिए वो कारनामा किया है, जिसकी उम्मीद और इंतज़ार हर अभिनेता को अपने करियर में रहती है। ख़ुद सिद्धार्थ इसको लेकर क्या साचते हैं? क्या उन्हें भी ऐसा लगता है कि शेरशाह के बाद उनके करियर का रुख़ अब एक नयी दिशा लेगा, जो मेगा स्टारडम की तरफ़ जाती है? जागरण डॉट कॉम के डिप्टी एडिटर मनोज वशिष्ठ से बातचीत में सिद्धार्थ ने ऐसे सवालों के जवाब दिये।
सिद्धार्थ से जब यह सवाल किया गया तो उन्होंने कहा- ”जी, आज के रिस्पॉन्स के बाद ज़रूर लगता है, पर मेरे करियर में टर्निंग प्वाइंट हो या ना हो, लेकिन मेरे करियर में एक बहुत प्यारी पिक्चर ज़रूर आयी है, जिसे देखने का मौक़ा दर्शकों को मिला। मुझे बतौर एक टीम उसका हिस्सा बनने का मौक़ा मिला। प्यार सबसे अधिक ज़रूरी है। कोई भी कलाकार यही चाहता है कि उसे अपने क्रिएटिव वर्क के लिए प्यार मिले। उसे आप चाहे टर्निंग प्वाइंट कहें। अच्छी पिक्चर कहें या अच्छी परफॉर्मेंस कहें।”
सिद्धार्थ आगे कहते हैं- ”शेरशाह मेरे लिए बहुत लम्बा समय रहा है, लगभग 5 साल। अलग-अलग स्क्रिप्टस, अलग-अलग टीम। अलग-अलग प्रोडक्शन हाउसेज़। जब कहानी इतनी स्पेशल हो, कैप्टन विक्रम बत्रा की। एक वीर बहादुर की कहानी, जिन्होंने हम सबके लिए जान कुर्बान कर दी। 500 से अधिक जवान कारगिल में शहीद हुए थे, उन सबके प्रति बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। यही कोशिश थी कि सही तरीक़े से फ़िल्म में उन्हें दिखा सकूं। जब लोगों का प्यार मिल रहा है तो हम सब लोगों के लिए बहुत इमोशनल मोमेंट है। गर्व भी होता है जो काम करने निकले थे, वो कर सके।”
सिद्धार्थ के करियर की यह पहली बायोपिक फ़िल्म है। फ़िल्म और किरदार के क़द को देखते हुए उन्हें लम्बी तैयारियां करनी पड़ीं। सिद्धार्थ बताते हैं- मेरी पहली बायोपिक फ़िल्म है। मुझे उनके (कै. विक्रम बत्रा) दोस्तों से बात करने का मौक़ा मिला। उनके परिवार से बात करने का मौक़ा मिला। उनका घर देखने का मौक़ा मिला। उनका सिर्फ़ एक ही इंटरव्यू था मेरे पास, जो कि पिक्चर के अंत में दिखाया गया है। शुरू से ही इस किरदार को लेकर एक कन्विक्शन था। कहीं कोई डाउट नहीं था कि वो ऐसे ही हैं। उनके दोस्तों ने इतनी सारी बातें बतायी थीं कि डाउट होने की कोई गुंज़ाइश ही नहीं थी। मेरा मानना है कि अगर दिलो-दिमाग़ से मैं उस कहानी को कन्विक्शन के साथ नहीं जी सकता तो शायद में उस स्क्रिप्ट के लिए सही नहीं हूं।
मैं इस पिक्चर को लेकर उनके दोस्तों से उनके जुड़वां भाई से इतनी बातें करता था, जिसने बहुत इंस्पिरेशन दी।साथ ही बहुत मदद की। बड़े पर्दे पर एक्टर हर चीज़ प्लान नहीं कर सकता। ऐसी तमाम छोटी-छोटी चीज़ें हैं जो लोगों ने नोटिस की हैं। जिस तरह मैं लव स्टोरी में चलता हूं तो वो कहते हैं, यह तो असल ज़िंदगी में ऐसे नहीं चलता। यह तो अलग चल रहा है। जब आप किसी मैटेरियल के बारे में संतुष्ट होते हैं तो कैमरा पर ख़ुद-ब-ख़ुद वो चीज़ें होती हैं। हां, यह सच है कि पहले होम वर्क करना पड़ता है, ताकि आप ऐसे एक्सीडेंट्स कैमरा के सामने होने दें। मेरे लिए यह बहुत संतोषप्रद और जज़्बाती सफ़र रहा है।
कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार मेरे लिए हमेशा स्पेशल रहेगा। उनकी कहानी स्पेशल रहेगी। उम्मीद करता हूं कि आज से कई साल बाद भी हमारे नौजवान उस वॉर के बारे में समझेंगे और उनके बलिदान के बारे में भी समझेंगे। इंडियन आर्मी के बारे में समझेंगे। पिक्चर बन जाए, एक एक्टर के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है।
सिद्धार्थ मानते हैं कि बायोपिक किरदार निभाना किसी काल्पनिक किरदार के मुक़ाबले मुश्किल होता है और इसकी वजह भी वो विस्तार से बताते हैं- ”आपके पास एक दायरा होता है। एक ज़ोन होता है। जैसा कि आपने कहा कि रेफरेंसिंग… तो रेफरेंसिंग के बाद आपको पता है कि इस जगह पर इतना हुआ। इस जगह पर ये चीज़ें हुईं। कभी-कभी आप सिनेमैटिक लिबर्टी ले लेते हैं कि आप उसको चेंज करें। जैसे कि हमारी पिक्चर में 90 फीसदी चीज़ें वही दिखायी गयी हैं, जो कैप्टन विक्रम बत्रा की लाइफ़ में हुई हैं। एक जगह पर या दूसरी जगह पर। तो हमें पता था कि हम शूटिंग के दौरान इतनी ही लिबर्टी ले सकते हैं। जैसे उन्होंने दोस्त से कहा- ‘फिक्र मत कर जानी या तो तिरंगा लहराकर आऊंगा या लिपटकर आऊंगा, लेकिन आऊंगा ज़रूर।’
जब आप उनके दोस्तों से बात करेंगे तो वो बताते हैं कि उसने तो ऐसे ही बोल दिया था। ऐसा नहीं है कि कैप्टन विक्रम बत्रा के बारे में लोगों ने लिखा नहीं है या किताबें नहीं लिखी गयी हैं या इंटरव्यू नहीं हैं। जब आपके पास एक सीमित ज़ोन होता है तो आपको अपनी इमोशंस को नियंत्रित करना पड़ता है। अपने स्टाइल को अडेप्ट करना पड़ता है। अपने सीन को एक दिशा में लेकर जाना पड़ता है। बतौर एक्टर आपको ज़्यादा कंट्रोल, क्राफ्ट और तैयारी चाहिए होती है। आप अचानक से उठकर कुछ भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वो किरदार की सारी बातें डॉक्यूमेंटड हैं। काल्पनिक किरदार को निभाने में जो आज़ादी मिलती है, वो आप बायोपिक में नहीं ले सकते।”
सिद्धार्थ ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरआत करण जौहर के असिस्टेंट के तौर पर माई नेम इज़ ख़ान से की थी, जिसमें शाह रुख़ ख़ान और काजोल लीड रोल्स में थे। शाह रुख़ ने शेरशाह के लिए ट्विटर पर सिद्धार्थ की तारीफ़ भी की। सिद्धार्थ ने इस पर कहा- ”मैंने उनको (शाह रुख़ ख़ान) पर्सनली भी बोला भी है। डायरेक्शन में असिस्टेंट के तौर पर उनकी फ़िल्म करने का मौक़ा भी मिला। उन्होंने जब ट्विटर पर लिखा तो मुझे बहुत बढ़िया और स्पेशल भी लगा। इस तरह की तारीफ़ मुझे शाह रुख़ सर से मिलती रही है। इतने सालों से मेरे फेवरिट एक्टर रहे हैं। शेरशाह जैसी फ़िल्म के लिए तारीफ़ मिलती है तो स्पेशल लगता है।”
शेरशाह 12 अगस्त को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हो चुकी है। फ़िल्म का निर्देशन विष्णु वर्धन ने किया है। कियारा आडवाणी ने फ़िल्म में कै. विक्रम बत्रा की प्रेमिका और मंगेतर डिम्पल चीमा का किरदार निभाया है।