सावन के महीने में भोलेनाथ की पूजा की जाती है। शिव जी की पूजा में केतकी का फूल वर्जित होता है। वैसे अगर आप इसके पीछे का कारण नहीं जानते हैं तो आज हम आपको वह कारण बताने जा रहे हैं। एक बार ब्रह्मा व विष्णु में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है?
ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। उसी बीच वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने निकले।
छोर न मिलने के कारण विष्णु लौट आए। उसके बाद ब्रह्मा भी सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने आकर विष्णु से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर स्वयं भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की आलोचना की।
फिर दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की। तब शिवजी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। शिव ने केतकी पुष्प को झूठा साक्ष्य देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह फूल मेरी पूजा में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इसलिए केतकी का फूल शिव-पूजा में नहीं चढ़ता है।