असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने एलान किया है कि हग्राम मोहिलारी के नेतृत्व वाली बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट विधानसभा में भाजपा का समर्थन करेगी। सरमा ने गुवाहाटी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि विपक्षी बोडो पार्टी को असम विधानसभा में भाजपा के सहयोगी के तौर पर शामिल किया गया है।
गौरतलब है कि बीपीएफ ने दिसंबर 2020 में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के चुनाव से पहले भाजपा से गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया था। बीपीएफ इसके बाद 2021 में हुए असम विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाले महाजोत में शामिल हो गया था। हालांकि, चुनावों में हार के बाद बीपीएफ ने एक बार फिर खुद को कांग्रेस के गठबंधन से अलग कर लिया था। सरमा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि अब से बीपीएफ विधायक विधानसभा में ट्रेजरी बेंच का हिस्सा होंगे। यह समझौता बीपीएफ विधायक दल के साथ है और विधानसभा तक ही सीमित है। हम पार्टी के साथ किसी भी राजनीतिक समझौते पर नहीं पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि इस कदम से पहले यूपीपीएल की सहमति ली गई थी।
असम में अब क्या है दलों की सीटों के आंकड़े?
इसके साथ ही 126 सदस्यीय राज्य विधानसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन की ताकत बढ़कर 81 (भाजपा 62, यूपीपीएल 7, असम गण परिषद 9 और बीपीएफ 3) हो गई, जबकि विपक्ष की संख्या 44 हो गई। एक सीट खाली पड़ी है।
उल्फा-आई के गणतंत्र दिवस समारोह के बहिष्कार न करने के फैसले का स्वागत
असम सीएम ने प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) द्वारा आगामी गणतंत्र दिवस समारोह के बहिष्कार का आह्वान नहीं करने के कदम का स्वागत किया। उल्फा (आई) ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर भी बंद के आह्वान से परहेज किया था। उन्होंने कहा, “मैं सकारात्मक कदम का स्वागत करता हूं और विश्वास करता हूं कि इस तरह के विश्वास निर्माण उपायों के माध्यम से हम भविष्य में संगठन के साथ शांति वार्ता के लिए बैठ सकेंगे।”
‘असम-मेघालय सीमा विवाद के हल का निर्णय अब केंद्र को लेना है’
सरमा ने असम-मेघालय के बीच लंबे समय से जारी विवाद पर भी बयान दिया। उन्होंने कहा, “पड़ोसी राज्यों के बीच लंबे समय से जारी सीमा विवाद के एक हिस्से को सुलझाने के लिए भेजी गई सिफारिशों पर अंतिम फैसला अब केंद्र को लेना है। सरमा ने हालांकि सीमा विवाद को हल करने के लिए प्रस्तावित ‘आदान-प्रदान’ के फॉर्मूले का विरोध करने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधा और कहा कि अविभाजित असम से अन्य सभी राज्यों के अलग होने के पीछे कांग्रेस ही थी।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत की स्वतंत्रता के बाद अधिकांश समय तक केंद्र और पूर्वात्तर राज्यों में सत्ता में रही कांग्रेस ने सीमा विवादों को सुलझाने से परहेज किया ताकि पड़ोसी राज्य हमेशा एक-दूसरे के साथ संघर्षरत रहें। सरमा और मेघालय के उनके समकक्ष कोनराड संगमा ने छह क्षेत्रों में विवादों पर गौर करने के लिए दोनों राज्यों द्वारा गठित तीन क्षेत्रीय समितियों की सिफारिशें 20 जनवरी को नयी दिल्ली में शाह को सौंपी थीं।