Russia Ukraine War latest: रूस-यूक्रेन युद्ध में हिंदुस्तान के कुछ युवाओं ने भी जंग लड़ी। इसमें दिलचस्प बात ये रही कि युद्ध लड़ने गए लोगों में कोई महज इंटर पास था तो कुछ ग्रेजुएट भी थे। इक्का-दुक्का उन युवाओं को छोड़ दिया जाए जिनके पास कोई प्रोफेशनल डिग्री या डिप्लोमा था तो सभी ऐसे परिवारों से आते थे, जिनकी जीवन का संघर्ष एक आम भारतीय जैसा था। परिस्थितियां कठिन थीं, पास में पैसे नहीं थे, जॉब भी नहीं मिल रही थी। ऐसे में उनके पास रूस में जॉब करने का प्रपोजल आया तो वो इंकार नहीं कर सके। दरअसल हर महीने लाखों सैलरी, रहना-खाना फ्री यहां तक कि आने-जाने के हवाई जहाज की टिकट भी फ्री वाला ऑफर सबको भा गया। कुछ को अंदाजा था शायद उन्हें हिंट दे दी गई थी कि ऐसा काम करना है जो फौजी करते हैं। किसी को बोला गया था कि ग्राउंड स्टाफ बनकर फौजियों की सहायता करनी है। तो किसी को सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की जॉब लगवाने का ऑफर देकर रूस भेज दिया।
जब बेरोजगार भारतीय युवा पहुंचे रूस
ये लोग रूस पहुंचे तो उनकी मिलिट्री ट्रेनिंग हुई। 15 दिन से 30 दिन में ट्रेनिंग देकर उन्हें हाथ में बंदूक थमाकर मोर्चे पर रवाना कर दिया। उन्हें ये हिदायद दी कि अपने कमांडर का हुक्म मानना और जो सामने शत्रु दिखे उसे गोली मार देना।
अधिकांश को तो ये पता तक नहीं था कि उन्हें असत्य बोलकर फौजी बनाकर जंग के मैदान में मरने के लिए भेजा है। प्लेसमेंट एजेंसी वालों ने तो कुछ के पासपोर्ट भी वहां के हैंडलर्स को बताकर छिनवा दिए थे, ताकि भाग न सकें। ये कबूतरबाजी जैसा मुद्दा था, जिसमें बढ़िया फ्यूचर का लालच दिखाकर लंडन और कनाडा भेज दिया जाता था। हालांकि उसमें डंकी रूट से भेजते हैं, जिसमें जान का खतरा होने के साथ नरक जैसी स्थितियां होती हैं, लेकिन इन लोगों को बढ़िया फ्लाइट में शान से बैठकर मॉस्को जाना था। रूस गए युवाओं के सामने इस बात का डर नहीं था कि उन्हें पुलिस पकड़ लेगी और वापस इण्डिया भेज देगी।
वो वीडियो कॉल…
ये अनफेयर होकर भी एक फेयर डील थी। पेपर्स साइन हो चुके थे। लोग धांसू जॉब करने रूस जाते हैं। जिनका कलेजा मजबूत था उन्होंने मन मारकर कुछ समय रुकने का निर्णय किया। कुछ पहले ही दिन से विरोध करने लगे तो फिर उन्हें धमकाया गया। जैसे तैसे कुछ समय बीतता है। अचानक एक दिन कुछ युवा वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपनी हालत बयां करते हैं। उन्होंने हिंदुस्तान गवर्नमेंट से सहायता मांगी तब इस गोरखधंधे का खुलासा हुआ। लिखापढ़त होती है, तब जाकर कुछ भारतीय नागरिकों के लौटने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ।
दहशत का एक साल
रूस-यूक्रेन बॉर्डर पर लड़ने वाले इन गुमनाम फौजियों की इंडिविजुअल कहानियां वायरल हुईं। अब आपको राकेश और ब्रजेश यादव की मुकदमा स्टोरी बताते हैं कि कैसे लोगों के घरों में दीवारों की लिपाई-पुताई यानी पेंटिंग करने वाले दो युवा बेहतर भविष्य का सपना लेकर रूस जाते हैं, इस तरह उनकी जीवन 360 डिग्री बदल जाती है।