पाकिस्तान की करतूत से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की 25 सितंबर को मंत्री परिषद स्तर की बैठक रद हो गई। यह उम्मीद की जा रही थी कि इस बैठक में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री आमने-सामने होंगे। इस बैठक के पूर्व पाकिस्तान इस बात पर जोर दे रहा था कि तालिबान को सार्क की होने वाली विदेश मंत्रियों की बैठक में एक प्रतिनिधि भेजने की अनुमति दी जाए। हालांकि, भारत समेत कई मुल्कों ने पाक के इस प्रस्ताव का विरोध किया था। इसके चलते इस बैठक को टालना पड़ा। नेपाल विदेश मंत्रालय ने अपनी एक विज्ञप्ति में कहा है कि सभी सदस्य देशों की सहमति की कमी के कारण बैठक रद कर दी गई है। आखिर क्या है पाकिस्तान की रणनीति। जानें विशेषज्ञ की राय।
सार्क की बैठक में तालिबान को लाने के पीछे क्या है पाक की रणनीति
प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि सार्क की इस पूर्वनिर्धारित बैठक में पाकिस्तान का दोहरा चरित्र उजागर हुआ है। एक बार फिर यह सिद्ध हो गया है कि तालिबान को लेकर पाक हरदम झूठ बोलता रहा है। प्रो. पंत ने कहा कि पाक बहुत चतुराई से अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत को मान्यता दिलाने का रास्ता तैयार कर रहा है। उन्होंने कहा सार्क देशों की बैठक में पाकिस्तान की यही चाल थी। बता दें कि पाकिस्तान ने अतंरराष्ट्रीय मंचों पर भी तालिबान से कोई संबंध नहीं रखने की बात कही है। तालिबान को लेकर वह अफगानिस्तान की निर्वाचित सरकार और अमेरिका से भी झूठ बोलता रहा है।
उन्होंने कहा कि अगर सार्क की इस बैठक में तालिबान के प्रवेश की इजाजत मिल जाती तो इसके गंभीर परिणाम होते। सार्क में तालिबान की मौजूदगी का यह अर्थ जाता कि सार्क देशों ने तालिबान शासन को एक तरह से हरी झंडी दे दी है। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। भारत व सार्क के अन्य सदस्य देशों ने उसकी मंशा पर पानी फेर दिया। पाक के इस चाल पर भारत ने सख्त रुख अपनाया, इसके चलते सार्क की बैठक को रद करना पड़ा।
खास बात यह है अमेरिका, यूरोपीय संघ, आस्ट्रेलिया और चीन सार्क के पर्यवेक्षक देश हैं। तालिबान के सार्क की बैठक में शामिल होने एक गलत संदेश जाता। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद वह अपनी सरकार की वैधता पर काम कर रहा है। उसने अन्य अतंरराष्ट्रीय सगंठनों से अपनी मान्यता देने की अपील की है। इसके मद्देनजर उसने अपने शासन में बदलाव के संकेत भी दिए थे। हालांकि, उसने अब तक अपने किसी वादे को पूरा नहीं किया है।
बता दें कि तालिबान ने UNGA में शामिल होने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरस को भी चिट्ठी लिखी है। इसके लिए तालिबान ने अपने प्रवक्ता सुहैल शाहीन को संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का नया राजदूत नामित किया है। तालिबान ने वर्तमान में चल रहे महासभा के 76वें उच्च स्तरीय सत्र में भाग लेने और बोलने की मांग की है।
पाक के अनुरोध को सदस्य देशों ने विचार करने से किया इन्कार
पिछले वर्ष कोरोना महामारी के कारण सार्क विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक हुई थी। पाकिस्तान ने सार्क की बैठक में तालिबान शासन को अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति मांगी थी। पाकिस्तान के अनुरोध को सदस्य देशों ने विचार करने से इन्कार कर दिया। उस वक्त पाकिस्तान ने इस बात पर भी जोर दिया कि अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार के किसी भी प्रतिनिधि को सार्क विदेश मंत्रियों की बैठक में अनुमति दी जानी चाहिए। पाकिस्तान के इन अनुरोधों का भी अधिकांश सदस्य देशों ने विरोध किया, जिसके कारण एक आम सहमति नहीं बन सकी। इसके चलते 25 सितंबर को होने वाली सार्क विदेश मंत्रियों की बैठक को रद करना पड़ा है।
क्या है सार्क और उसका लक्ष्य
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन की स्थापना 8 दिसंबर,1985 को ढाका में सार्क चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ की गई थी। दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग का विचार सर्वप्रथम नवंबर 1980 में सामने आया। सात संस्थापक देशों- बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव नेपाल, पाकिस्तान एवं श्रीलंका के विदेश सचिवों के परामर्श के बाद इनकी प्रथम बैठक अप्रैल, 1981 में कोलंबिया में हुई थी। अफगानिस्तान साल 2005 में आयोजित हुए 13वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में सबसे नया सदस्य बना। इस संगठन का मुख्यालय एवं सचिवालय नेपाल के काठमांडू में स्थित है। अफगानिस्तान के अलावा इस संगठन में सात अन्य देश शामिल हैं। इसमें भारत, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका और पाकिस्तान है। चीन, यूरोपीय संघ, ईरान, कोरिया गणराज्य, ईरान, आस्ट्रेलिया, जापान, मारीशस, म्यांमार और अमेरिका इस सगंठन के पर्यवेक्षक देश हैं।