वर्ल्ड मीडिया में पिछले साल से ही यह खबरें आ रही हैं कि गल्फ कंट्रीज की सबसे बड़ी ताकत सऊदी अरब जल्द इजराइल को मान्यता दे सकता है। अब UN में सऊदी के परमानेंट रिप्रेजेंटेटिव अब्दुल्ला अल मोआलिमिनी ने साफ तौर पर इसका जिक्र कर दिया है। हालांकि, उन्होंने इसके साथ 13 साल पुराने अरब प्रस्ताव की शर्तें भी जोड़ दीं। उन्होंने कहा- हम इजराइल के साथ संबंध सामान्य कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उसे 2002 के अरब शांति प्रस्ताव की शर्तें माननी होंगी।
क्या कहा अब्दुल्ला ने
अब्दुल्ला अल मोआलिमिनी ने अरब न्यूज को इंटरव्यू दिया। इसमें उनसे इजराइल के साथ रिश्ते सामान्य करने और उसे मान्यता देने पर सवाल पूछा गया। इस पर अब्दुल्ला ने कहा- हम इसके लिए तैयार हैं। रियाद भी शांति चाहता है। लेकिन, इसके लिए इजराइल को उन सभी क्षेत्रों से अपना कब्जा हटाना होगा जो उसने 1967 की जंग के दौरान किया। फिलिस्तीन को एक आजाद मुल्क मानना होगा। पूर्वी यरूशलम को उसकी राजधानी माननी होगी।
उन्होंने आगे कहा- हमने ये शर्तें 2002 में तय की थीं और इसमें सभी अरब देशों की सहमति थी। सऊदी अरब आज भी इन पर कायम है।
तो सभी मुस्लिम देश तैयार होंगे
एक सवाल के जवाब में अब्दुल्ला ने कहा- सऊदी अरब ने अपना स्टैंड नहीं बदला है। अगर इजराइल हमारी मांगों को पूरा कर देता है तो सिर्फ सऊदी अरब ही क्यों, सभी 57 मुस्लिम देश उसे मान्यता देने तैयार हैं। वक्त सही या गलत का फैसला नहीं करता। फिलिस्तीन की जमीन पर इजराइली कब्जा पहले भी गलत था और आज भी गलत है।
लेकिन, खिचड़ी पक रही है…
अब्दुल्ला कुछ भी कहें, लेकिन ये तय है कि सऊदी अरब और इजराइल के बीच बैकडोर डिप्लोमैसी चल रही है। पिछले महीने इजराइली मीडिया में कई खास रिपोर्ट्स आईं थीं। इनमें दावा किया गया था कि अमेरिका के 20 यहूदी नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल सऊदी अरब पहुंचा और उसने कई दिन तक यहां के सीनियर अफसरों से बातचीत की। इसके पहले भी इजराइल और अमेरिकी नेताओं के सीक्रेट रियाद दौरे होते रहे हैं। सभी का मकसद एक ही था कि रियाद और तेल अवीव के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन शुरू कराए जाएं।
ये इसलिए भी अहम है क्योंकि UAE, सूडान, मोरक्को और बहरीन इजराइल को मान्यता दे चुके हैं। कुवैत और जॉर्डन ये पहले ही कर चुके थे। इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्टाली बेनेट ने इसी हफ्ते UAE का दौरा किया था। अबुधाबी जाने वाले वो पहले इजराइली प्रधानमंत्री थे।