आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने बीते अक्टूबर महीने में माली और जॉर्डन के साथ तुर्की को भी अपनी ग्रे-लिस्ट में शामिल कर लिया था। पाकिस्तान पहले से ही इस सूची में था जिसे बरकरार रखा गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि एफएटीएफ के इस कदम से भारत के खिलाफ लामबंदी में पाकिस्तान की हिमायत करने वाले तुर्की की आर्थिक सेहत बिगड़ती जाएगी। यही नहीं दोनों देशों के रिश्तों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पालिसी रिसर्च ग्रुप (Policy Research Group) में एक लेख में लंदन स्थित व्यापार सलाहकार जेम्स क्रिक्टन (James Crickton) का कहना है कि ऐसे में जब राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन और प्रधानमंत्री इमरान खान के दौरों और द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर काम करने के साथ तुर्की और पाकिस्तान के बीच संबंध परवान चढ़ रहे हैं। FATF के कदम से तुर्की और पाकिस्तान के संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
क्रिक्टन लिखते हैं कि एफएटीएफ के फैसले के बाद हालात बदले हैं आने वाले वक्त में तुर्की पहले की तरह इस्लामाबाद को सहायता देने वाला नहीं है। जेम्स क्रिक्टन (James Crickton) का मानना है कि समय के साथ तुर्की के लिए हालात और खराब होते ही जाएंगे। सनद रहे अक्सर कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान को तुर्की का साथ मिलता रहा है। एफएटीएफ के फैसले के बाद पाकिस्तान की स्थिति तो अनिश्चित बनी हुई है। आने वाले दिनों में तुर्की के लिए भी हालात खराब हो सकते हैं।
दरअसल ग्रे लिस्ट में रखे जाने की वजह से तुर्की और पाकिस्तान दोनों को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद मिलने में मुश्किल पेश आएगी। यही नहीं एफएटीएफ की ओर से निर्धारित लक्ष्यों को नहीं पूरा करने की दशा में इन पर ब्लैक लिस्टेड होने का खतरा भी बढ़ गया है। जाहिर है तुर्की को पाकिस्तान की वकालत भारी पड़ती नजर आ रही है। एफएटीएफ की अगली बैठक मार्च-अप्रैल में होने वाली है। ऐसे में तुर्की का फोकस एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बचने पर होगा…