नई दिल्ली. हॉकी का जादूगर, कोई कहता था दद्दा, भारत ही नहीं दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी, जिसका रुतबा खुद एडॉल्फ हिटलर भी मानता था. नाम मेजर ध्यानचंद, काम गोलों की बारिश करना. आज मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) की 116वीं जयंती है और आज ही का दिन भारत में स्पोर्ट्स डे यानि खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है. ध्यानचंद को अगर भारतीय खेल इतिहास का सबसे शानदार खिलाड़ी माना जाए तो गलत नहीं होगा. उन्होंने अपने जीवन में ऐसी उपलब्धियां हासिल की, जिनके बारे में कोई सपने में भी नहीं सोच सकता. आइए आपको बताते हैं ध्यानचंद की जीवन गाथा, जिसमें दर्द भी है, संघर्ष भी है और कामयाबी भी.
इलाहाबाद में हुआ जन्म
ध्यानचंद (Major Dhyanchand) का जन्म 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में हुआ था. ध्यानचंद के पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे और उसके लिए हॉकी खेलते थे. पिता का बार-बार ट्रांसफर होता था तो इसलिए वो छठी क्लास तक ही पढ़ाई कर सके और अंत में उनका परिवार इलाहाबाद छोड़कर झांसी बस गया. ध्यानचंद के पिता हॉकी खिलाड़ी थे लेकिन उन्हें पहलवानी रास आती थी. गजब की बात ये है कि ध्यानचंद बचपन में हॉकी से जी चुराते थे. जब वो 16 बरस के हुए थे उन्होंने आर्मी जॉइन कर ली और वहां उन्हें हॉकी से जैसे प्रेम ही हो गया.
ऐसे पड़ा ध्यानचंद का नाम
ध्यानचंद (Major Dhyanchand) आर्मी जॉइन करने के बाद रोजाना रात को प्रैक्टिस करते थे. उस दौर में स्ट्रीट लाइट नहीं होती थी, इसलिए वो चांद निकलने के बाद ही प्रैक्टिस किया करते थे. चांदनी रात में प्रैक्टिस की वजह से ही उन्हें दोस्त चंद पुकारने लगे और उनका नाम ध्यानचंद पड़ गया. पहले चार साल यानि 1922 से 1926 के बीच ध्यानचंद ने सिर्फ आर्मी हॉकी और रेजिमेंट गेम्स खेले. बाद में उन्हें इंडियन आर्मी की हॉकी टीम के लिए चुन लिया गया. टीम न्यूजीलैंड गई और उसने वहां 18 मैच जीते, 2 मैच ड्रॉ रहे और टीम महज एक मैच हारी. ध्यानचंद ने वहां ऐसा प्रदर्शन किया कि उन्हें देश लौटते ही प्रमोशन मिल गया और वो लांस नायक बन गए.
ध्याचंद का ओलिंपिक सफर
ध्यानचंद (Major Dhyanchand) का पहला ओलिंपिक एम्सटर्डम था. जहां उन्होंने अपने पहले ही मैच में 3 गोल दाग दिये. ऑस्ट्रिया के खिलाफ उनका प्रदर्शन बेहद ही काबिलेतारीफ था और इसके बाद भारत ने बेल्जियम को 9-0 से हराया, जिसमें उन्होंने एक ही गोल किया. तीसरे मैच में ध्यानचंद (Dhyanchand) ने भारत को डेनमार्क के खिलाफ जीत दिलाई, 5 में से 3 गोल ध्यानचंद ने दागे स्विट्जरलैंड के खिलाफ भी ध्यानचंद ने 4 गोल किये. एम्सटर्डम ओलिंपिक खेलों में हॉकी का फाइनल मैच भारत-नीदरलैंड्स के बीच हुआ लेकिन इस मैच से पहले ध्यानचंद समेत कई खिलाड़ी बीमार पड़ गए. हालांकि इसके बावजूद भारत ने मैच 3-0 से जीता और ध्यानचंद ने 2 गोल दाग भारत को ओलिंपिक में पहला गोल्ड दिलाया. ध्यानचंद ने ओलिंपिक में सबसे ज्यादा गोल दागे और उनकी प्रतिभा देख एम्सटर्डम के निजी अखबार ने उन्हें हॉकी का जादूगर बताया. विएना स्पोर्ट्स क्लब में आज भी ध्यानचंद के चार हाथों वाली मूर्ति लगी है और उनके हाथों में हॉकी स्टिक्स हैं.
1932 ओलिंपिक में ध्यानचंद का जलवा
1932 के लॉस एंजिलिस ओलिंपिक के फाइनल में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. इस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल दागे. टूर्नामेंट में भारत ने कुल 35 गोल दागे, जिसमें से 25 गोल ध्यानचंद अपने नाम किया. उस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे. उस टूर्नामेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 गोल इन दोनों भाइयों की स्टिक से निकले थे. एक मैच में 24 गोल दागने का 86 साल पुराना यह रिकॉर्ड भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में इंडोनेशिया में खेले गए एशियाई खेलों में हांगकांग को 26-0 से मात देकर तोड़ा.
1936 बर्लिन ओलिंपिक में जर्मनी को उसके घर में हराया
बर्लिन ओलिंपिक में भारत ने फाइनल मुकाबला मेजबान जर्मनी से खेला. 15 अगस्त 1936 को हुए इस फाइनल को देखने 40 हजार लोग जुटे थए, जिसमें एडॉल्फ हिटलर भी शामिल थे फाइनल मैच पहले हाफ तक कांटे का रहा. भारत महज 1 गोल दाग सका. लेकिन दूसरे हाफ में ध्यानचंद (Major Dhyanchand) ने जूते निकालकर नंगे पांव हॉकी खेली और जर्मनी को 8-1 से रौंद दिया. इस मैच के दौरान जर्मनी के गोलकीपर की स्टिक ध्यानचंद के मुंह पर लगी थी और उनका दांत भी टूट गया था. बहरहाल भारत को बर्लिन ओलिंपिक में भी गोल्ड मिला और ध्यानचंद के प्रदर्शन ने हिटलर को उनका फैन बना दिया. हिटलर ने ध्यानचंद को खाने पर बुलाया और उन्हें जर्मनी से खेलने के लिए कहा. साथ ही उन्हें कर्नल बनाने का लालच भी दिया गया लेकिन ध्यानचंद ने हिंदुस्तान को ही चुना.
साल 1935 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का दौरा किया था. यहां ध्यानचंद (Major Dhyanchand) ने 48 मैच खेले और 201 गोल किए. क्रिकेट के महानतम बल्लेबाज डॉन ब्रैडमैन भी उनके कायल हो गए. उन्होंने कहा, ध्यानचंद हॉकी में ऐसे गोल करते हैं, जैसे हम क्रिकेट में रन बनाते हैं. सर डॉन ब्रैडमैन ने 1935 में ध्यानचंद से मुलाकात की थी. ध्यानचंद के रिकॉर्ड्स इतने गजब हैं लेकिन इसके बावजूद आज तक इस महान खिलाड़ी को भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया है. हर साल खेल जगत स्पोर्ट्स डे के दिन उन्हें भारत रत्न देने की मांग करता है लेकिन अबतक इस मांग की अनदेखी ही की जा रही है.