भाजपा ने शनिवार को जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 107 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की तो उसमें नजरें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम को लेकर थीं।
योगी अयोध्या या मथुरा से नहीं, गोरखपुर से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। वही गोरखपुर, जो अब तक उनका गढ़ रहा है। भाजपा की पहली सूची यह साफ इशारा कर रही है कि स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कुछ विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने के बाद वह ज्यादा प्रयोग नहीं करना चाहती।
भाजपा की पहली सूची में सबसे बड़ा नाम किसका?
पिछले कुछ दिनों से चर्चा थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले हैं। कहा जा रहा था कि पार्टी उन्हें अयोध्या से चुनावी मैदान में उतारेगी। योगी की छवि, भाजपा का राम मंदिर का एजेंडा और अयोध्या में हो रहे मंदिर निर्माण की वजह से योगी को अयोध्या से टिकट देना भाजपा के लिए बड़ा सांकेतिक कदम होता। चर्चा यह भी थी कि योगी मथुरा से चुनाव लड़ सकते हैं, क्योंकि भाजपा नेताओं के बयानों में बार-बार मथुरा का जिक्र आ रहा था। हालांकि, पार्टी ने योगी को गोरखपुर से चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया है।
2# योगी के लिए आखिर गोरखपुर ही क्यों?
योगी आदित्यनाथ ने 1998 में पहली बार गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए। 2017 में मुख्यमंत्री बनने से पहले तक वे लगातार पांच बार गोरखपुर से सांसद रहे। जाहिर है कि गोरखपुर योगी का गढ़ है। भाजपा ने अयोध्या या मथुरा की जगह योगी को गोरखपुर से उतारने का फैसला इसलिए किया है क्योंकि यहां से चुनाव लड़ने के लिए खुद योगी या पार्टी को ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी। लिहाजा, पार्टी में मची हालिया उठापटक के मद्देनजर योगी पूरे प्रदेश में प्रचार पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।
3# क्या भाजपा विधायकों के पार्टी छोड़ने का असर पहली सूची में नजर रहा है?
इस सूची से साफ है कि भाजपा काफी सतर्क हो गई है। पहले कहा जा रहा था कि पार्टी 40 फीसदी विधायकों के टिकट काट सकती है, लेकिन पहली सूची में मात्र 21 टिकट काटे गए हैं, यानी करीब 20 फीसदी। इस तरह पार्टी ने डैमेज कंट्रोल किया है और संभावित बगावत को टालने के लिए पुराने चेहरों पर भरोसा किया है।
पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा प्रयोगधर्मिता से भी बची है। भाजपा को चिंता है कि किसान आंदोलन से उसे ज्यादा नुकसान न हो। इस आंदोलन की वजह से कुछ विधायकों का गांवों में विरोध भी हुआ था। फिर भी पार्टी ने पुराने नाम रिपीट किए हैं। दूसरे दलों से आए नेताओं को भी टिकट मिले हैं। जैसे- बेहट सीट से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी जीते थे। वे भाजपा में आ गए और पार्टी ने उन्हें टिकट दे दिया। छपरौली राष्ट्रीय लोक दल का गढ़ मानी जाती है। यह पिछले चुनाव में रालोद की जीती हुई इकलौती सीट थी। यहां से सहेंद्र सिंह रमाला जीते थे, लेकिन वे भाजपा में चले गए। इस बार उन्हें ही भाजपा ने टिकट दिया है।
पार्टी ने युवा चेहरों को भी मौका दिया है। जैसे- मेरठ शहर सीट का मिजाज ऐसा रहा है कि यहां भाजपा एक बार जीत जाती है, दूसरी बार हार जाती है। यह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की पुरानी सीट है। वाजपेयी भाजपा का बड़ा ब्राह्मण चेहरा हैं, लेकिन पार्टी ने इस बार युवा चेहरे कमल दत्त शर्मा को यहां से टिकट दिया है। इसी तरह मेरठ कैंट से भाजपा ने विधायक सत्य प्रकाश अग्रवाल की जगह अमित अग्रवाल को मौका दिया है।
4# पहली सूची में कोई अल्पसंख्यक नहीं?
पहली सूची में महिलाओं की संख्या कम है। एक चौंकाने वाला नाम पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य का है, जिन्हें आगरा से टिकट दिया गया है। भाजपा ने जातिगत संतुलन साधने की कोशिश की है। सर्वण, पिछड़े, दलित सभी को मौके दिए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी तादाद में मुस्लिम वोटर हैं, इसके बावजूद भाजपा की पहली सूची में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है। वहीं, बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो मायावती ने 53 उम्मीदवारों की पहली सूची में 14 मुस्लिमों, 12 पिछड़े और नौ ब्राह्मणों को टिकट दिया है।
5# क्या अगली सूचियों में भी भाजपा पुराने चेहरों पर ही दांव खेलेगी?
यह कहना मुश्किल है। हाल ही में कुछ विधायक भाजपा से सपा में गए। हालांकि, दिलचस्प रूप से शनिवार को भाजपा की पहली सूची आने के वक्त ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बयान दिया कि भाजपा ने जिन विधायकों का टिकट काटा है, उन्हें अब सपा मौका नहीं देगी।