अयोध्या में 29 साल पहले आज ही के दिन बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था. इसके बाद हिंसक घटनाएं हुईं और विवादित मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसके बाद साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई कर फैसला दिया और विवाद को हमेशा के लिए खत्म कर दिया. हालांकि, इसके बाद भी तमाम संगठनों और नेताओं द्वारा इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है. इस मौके पर आइए जानते हैं… 29 साल पहले 6 दिसंबर, 1992 को हुई इस घटना के दिन क्या हुआ था, कैसी थी उस दिन की सुबह, क्या थी तैयारी और कैसे गिराया गया ढांचा?
बाबरी के ढांचे को गिराने की तैयारी पहले से थी. 5 दिसंबर की सुबह इसके लिए अभ्यास भी किया गया था. 2009 में गठित लिब्राहन आयोग के मुताबिक, विवादित ढांचे को गिराने लिए अभ्यास किया गया था. इससे जुड़े कुछ फोटोग्राफ आयोग के सामने प्रस्तुत किए गए थे. पूरे दिन की गहमा-गहमी के बाद अगली सुबह हुई यानी 6 दिसंबर की सुबह. ‘जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो… जैसे नारें गूंज रहे थे. चारों ओर से भीड़ जुट रही थी.
सामने स्टेज पर मौजूद थे कई दिग्गज नेता
बाबरी मस्जिद के पूर्व में लगभग 200 मीटर दूर रामकथा कुंज में एक बड़ा स्टेज लगाया गया था. यहां वरिष्ठ नेता, साधू-संतों के लिए मंच तैयार किया गया था. विवादित ढांचे के ठीक सामने इस मंच को तैयार किया गया था, जहां पर एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कलराज मिश्रा, अशोक सिंहल, रामचंद्र परमहंस मौजूद थे.
सुबह 9 बजे का समय था, पूजा-पाठ हो रही थी. भजन-कीर्तन चल रहे थे. डीएम-एसपी सब वहीं थे. करीब 12 बजे फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने ‘बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर’ का दौरा भी किया. लेकिन वो आने वाले तूफान को भांपने में विफल रहे और कुछ ही देर में माहौल पूरी तरह बदल गया.
माइक से क्या बोल रहे थे सिंघल?
विहिप नेता अशोक सिंघल माइक से बोल रहे थे कि हमारी सभा में अराजक तत्व आ गए हैं. दरअसल, विहिप की तैयारी मंदिर परिसर में सिर्फ साफ-सफाई और पूजा-पाठ की थी. लेकिन, कारसेवक इससे सहमत नहीं थे.
तभी अचानक कारसेवकों का एक बड़ा हूजूम नारों की गूंज के बीच विवादित स्थल पर घुसा. इसके बाद उपद्रव शुरू हो गया. भीड़ बाबरी के ढांचे पर चढ़ गई. अब गुंबदों के चारो ओर लोग पहुंच चुके थे. उनके हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा जैसी चीजें थीं, जिसकी मदद से वो ढांचे को गिराने वाले थे.
हालांकि, कुदाल-फावड़े के साथ आगे बढ़ रही भीड़ को रोकने की काफी कोशिश की गई, इस दौरान संघ के लोगों के साथ उनकी छीना-झपटी भी हुई. लेकिन, भीड़ कहां रुकने वाली थी. जिसके हाथ में जो मिला लेकर चलता बना और गुंबद को ढहा दिया गया.
दो बजे गिरा पहला गुंबद
दो बजे के करीब पहला गुंबद गिरा. खबरें मिलीं कि पहले गुंबद के नीचे कुछ लोग दब गए हैं. इसके बाद चार से पांच बजे तक सभी गुंबद गिरा दिए गए थे. इस दौरान सीआरपीएफ ने कारसेवकों को रोकने की कोशिश की लेकिन उन पर पत्थर बरसने शुरू हो गए, जिसके बाद उन्हें पीछे हटना पड़ा. तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी यह हुआ और राज्य की कल्याण सिंह सरकार देखती रही.
दरअसल, कोर्ट ने आदेश जारी किया था कि विवादित स्थल पर कोई निर्माण कार्य नहीं होगा और सूबे के मुखिया कल्याण सिंह ने भी सर्वोच्च न्यायालय को इस बात का भरोसा दिया था कि कोर्ट के आदेशों का पालन किया जाएगा. लेकिन कारसेवकों के आगे सबकुछ विफल साबित हुआ.