गोवा के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (TMC) क्या इस बार अहम भूमिका निभाने जा रही है। यह प्रश्न सबके मन में है। गोवा के चुनाव में उसकी एंट्री नई है लेकिन उसका निशाना राज्य के 35 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाता हैं। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस की सक्रियता से इस बात की अटकलें भी तेज हो गई हैं कि वह भाजपा को सत्ता से बाहर करती है या फिर कांग्रेस को कमजोर करती है। जिससे एक बार फिर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ सकता है।
शुक्रवार को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के गोवा दौरे के साथ ही राज्य में चुनावी पारा बढ़ने लगा है। प्रियंका गांधी ने यूपी की तरह यहां भी महिलाओं पर फोकस किया है। उन्होंने आदिवासी महिलाओं से बात की, सप्तकोटेश्वर मंदिर गई और गोवा मुक्ति संग्राम के शहीदों को श्रद्धांजलि देने भी पहुंची। चुनाव प्रचार युद्ध में कांग्रेस बढ़त पर नजर आती है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के बड़े-बड़े होर्डिंग भी उसकी चुनावी तैयारियों को दर्शाते हैं। भाजपा दस साल के कामकाज के आधार पर वोट मांग रही है तथा उसने पूर्व मुख्यमंत्री और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की छवि को भुनाने की पूरी कोशिश की है। उनके होर्डिंग लग चुके हैं।
पश्चिम बंगाल का फॉर्मूला अपना रही TMC
गोवा में 30 फीसदी ईसाई आबादी है तथा 5 फीसदी मुस्लिम। जबकि 65 फीसदी हिन्दू हैं। इस प्रकार 35 फीसदी अल्पसंख्यक मत महत्वपूर्ण हैं। पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक मतों के सहारे भाजपा को हराने के बाद तृणमूल की नजर इन 35 फीसदी मतों पर है। इस पर अब तक कांग्रेस या कुछ स्थानीय पार्टियां ही हावी रहती हैं। लेकिन जिस प्रकार से तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यक राजनीतिक की छवि पश्चिम बंगाल में मजबूत हुई है, उसे वह गोवा में भी भुनाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री रहे एल. फ्लेरियो के भी तृणमूल में शामिल होने से कांग्रेस को झटका लगा है। उधर खबर यह है कि गोवा की कमान ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी खुद संभाले हुए हैं। ममता ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ भी समझौता किया है जिसे पिछले चुनाव में 11 फीसदी वोट और तीन सीटें मिली थीं। हालांकि, बाद में उसके दो विधायक भाजपा में चले गए थे।
क्या होगा त्रिकोणीय संघर्ष?
तृणमूल कांग्रेस के सक्रिय होने से राज्य में चुनावी संघर्ष त्रिकोणीय होने के दावे किए जा रहे हैं। यह संघर्ष भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल (एमजीपी सहित) में हो सकता है। तृणमूल कुछ और छोटे दलों को भी साथ लेने की कोशिश में है। उसकी गोवा फारवर्ड पार्टी यानी जीएफपी से बात चल रही थी लेकिन कांग्रेस ने उससे गठजोड़ कर लिया। जीएफपी ने पिछले चुनाव में तीन सीटें जीती थी लेकिन बाद में उसने भाजपा को सरकार बनाने में मदद की। इसलिए जब कांग्रेस ने उससे गठजोड़ किया तो तृणमूल ने खीजभरा बयान दिया कि भाजपा की सरकार बनाने वाले दल से कांग्रेस गठजोड़ कर रही है।
क्या है भाजपा की रणनीति?
राज्य में भाजपा की स्थिति मजबूत रही है लेकिन 10 साल से सत्ता में रही भाजपा को सत्ता विरोधी लहर की आशंका भी है। इसलिए दस साल के कामकाज के आधार पर वह वोट तो मांग रही है लेकिन साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर तथा उनकी छवि को भुनाने की भी भरपूर कोशिश कर रही है। राजनीतिक हल्कों में यह माना जा रहा है कि ममता की सक्रियता से भाजपा असहज कतई नहीं है। पिछले चुनाव में भले ही उसे सीटें 13 मिली हों लेकिन सबसे ज्यादा 32 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस 28 फीसदी मतों के साथ 17 सीट जीतने में कामयाब रही थी। यदि अल्पसंख्यक मतों में सेंध लगती है तो फिर भाजपा का फायदा होगा।
पिछले चुनावों में छह फीसदी वोट लेकर कोई सीट नहीं जीत पाने वाली आम आदमी पार्टी को भी इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। देखना यह होगा कि आप सत्ता विरोधी मतों को हासिल करती है या फिर कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों के वोट को झटकती है।